Tuesday, May 19, 2009

सूरज

सूरज को शायद सूरज होने का गुरूर है
चाँद को फिर भी लगता सूरज मजबूर है
सच बता सूरज तू मजबूर है
या ये बादलों का कुसूर है

-Mayank
मेरी तनहा इयां

ये मेरी तनहाइयां मुझे बहुत सताती हैं
रात तो छोडो अब ये दिन में भी चली आती हैं
एक अपने की तलाश में हर रोज घुमाती हैं
फिर इस शहर में तनहा सा एहसास कराती हैं

ये मंजिल को दूर और रास्तों को तनहा बताती हैं
कभी दोस्त,कभी यार तो कभी प्यार को तरसाती हैं
ये दूर खड़ी मुस्काती हैं और इशारों से बुलाती हैं
ये आंसू पीना सिखाती हैं और झूठी हंसी हंसाती हैं

by
Mayank Gupta
चाँद सूरज के इंतजार में हर रात जागता है
सुबह जब सूरज आता है चाँद सो जाता है

by
Mayank Gupta
काश! ये धरती थरथराये,
एक ऐसा भूकंप आए ,
जान किसी की न जाए,
बस तेरा शहर मेरे शहर से मिल जाए।

मयंक