Tuesday, May 19, 2009

मेरी तनहा इयां

ये मेरी तनहाइयां मुझे बहुत सताती हैं
रात तो छोडो अब ये दिन में भी चली आती हैं
एक अपने की तलाश में हर रोज घुमाती हैं
फिर इस शहर में तनहा सा एहसास कराती हैं

ये मंजिल को दूर और रास्तों को तनहा बताती हैं
कभी दोस्त,कभी यार तो कभी प्यार को तरसाती हैं
ये दूर खड़ी मुस्काती हैं और इशारों से बुलाती हैं
ये आंसू पीना सिखाती हैं और झूठी हंसी हंसाती हैं

by
Mayank Gupta

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